राजस्थान में वर्षा जल संरक्षण की शब्दावली



शब्द
शाब्दार्थ
आगौर (पायतान)
वर्षा जल को नाड़ी या तालाब में उतारने के लिए उसके चारों ओर मिट्टी को दबाकर आगोर (पायतान) बनाया जाता है।
टांका
वर्षाजल एकत्रित करने के लिए बनाया गया हौद।
नाडी
छोटी तलैया जिसमें वर्षा का जल भरा जाता है।
नेहटा (नेष्टा)
नाडी या तालाब से अतिरिक्त जल की निकासी के लिए उसके साथ नेहटा बनाया जाता है जिससे होकर अतिरिक्त जल निकट स्थित दूसरी नाड़ीतालाब या खेत में चला जाये।
पालर पाणी
नाडी या टांके में जमा वर्षा का जल।
बावड़ी
वापिकावापीकर्कन्धुशकन्धु आदि नामों से उद्बोधित। पश्चिमी राजस्थान में इस तरह के कुएं (बावडी) खोदने की परम्परा ईसा की प्रथम शताब्दी के लगभग शक जाति अपने साथ लेकर आई थी। जोधपुर व भीनमान में आज भी 700-800 ई. में निर्मित बावडियां मौजूद है।
बेरी
छोटा कुआंकुईयांजो पश्चिमी राजस्थान में निर्मित हैं।
मदार 
नाडी या तालाब में जल आने के लिए निर्धारित की गई धरती की सीमा को मदार कहते हैं। मदार की सीमा में मल-मूत्र त्याग वर्जित होता है।

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