सिवाणा दुर्ग ( Shivana fort )


⚡️बाड़मेर में स्थित छपन का पहाड़ नामक पर्वतीय क्षेत्र में स्थित सिवाना का दुर्ग इतिहास प्रसिद्ध है इसे “अणखलो सिवाणो” दुर्ग भी कहते हैं।बाड़मेर जिले के सिवाना कस्बे में स्थित सिवाना दुर्ग की स्थापना 954 ईसवी में परमार वंश के वीरनारायण ने की थी।✨✨


⚡️यह एक ऊंची हल्देश्वर की पहाड़ी पर बसा हुआ है। इसका प्रारंभिक नाम कम्थान था । यह राजस्थान के दुर्गों में वर्तमान में सबसे पुराना दुर्ग है।इस पर कुमट नामक झाड़ी बहुतायत में मिलती थी, जिससे इसे ‘कुमट दुर्ग’ भी कहते हैं।✨✨


⚡️पराचीन काल में इस तक पहुंचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम था। अलाउद्दीन खिलजी के काल में यह दुर्ग जालौर के राजा कान्हड़देव के भतीजे सातल देव के अधिकार में था। जब अलाउद्दीन जालोर पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ, तो सातल देव ने उसका का मार्ग रोका और कहलवाया कि जालौर पर आक्रमण बाद में करना, पहले सिवाना से निपट।✨✨


🌀इस पर विवश होकर अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाना का रुख किया, काफी परिश्रम एवं विपुल समय की बर्बादी के बाद ही अलाउद्दीन खिलजी इस दुर्ग पर अधिकार कर पाया। राव मालदेव ने गिरी सुमेल युद्ध (1540 ईस्वी) के बाद सेना द्वारा पीछा किए जाने पर सिवाना दुर्ग में आश्रय लिया था।✨✨


⚡️चद्रसेन ने मुगलों(अकबर) से युद्ध भी सिवाना को केंद्र बनाकर किया। जोधपुर के राठौड़ नरेशों के लिए भी यह दुर्ग विपत्ति काल में शरण स्थली के रूप में काम आता था। दुर्ग में कल्ला रायमलोत का थडा, महाराजा अजीतसिंह का दरवाजा, कोट, हल्देश्वर महादेव का मंदिर आदि दर्शनीय है।✨✨


🌀1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग को जीतकर उसका नाम “खैराबाद” रख दिया। इसमे दो साका हुए—प्रथम साका 1308 ई. में सातलदेव व अलाउद्दीन के संघर्ष के दौरान एवं द्वितीय साका वीर कल्ला रायमलोत व अकबर के संघर्ष के दौरान हुआ।


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