राजस्थान विवाह के संस्कार के प्रमुख रीति रिवाज
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(1) सगाई रस्म
(2) टीका रस्म
(3) लग्नपत्रिका रस्म
(4) गणेश पूजन/ हलदायत की पूजा रस्म विवाह के 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन, 9 दिन, पूर्व लग्न पत्रिका पहुंचाने के बाद वर पक्ष एवं वधू पक्ष ही अपने- अपने घरों में गणेश पूजन कर वर और वधू घी पिलाते है। इसे बाण बैठाना कहते है। ओर घर की चार स्त्रियां (अचारियां) (जिसके माता-पिता जीवित हो वर व वधू को पीठी चढ़ाती है। बाद में एक चचांचली स्त्री जिसके माता-पिता एवं सास-ससुर जीवित हो) पीठी चढ़ाती है। बाद में स्त्रियां लगधण लेती है।
(5) बिन्दोंरी/ बन्दोली की रस्म
(6) सामेला/ मधुपर्क की रस्म
(7) ढुकाव की रस्म
(8) तौरण मारना की रस्म
(9) पहरावणी/ रंगबरी (दहेज) की रस्म
(10) बरी पड़ला (वधू के लिए वर पक्ष द्वारा परिधान भेजना) की रस्म
(11) मुकलावा/ गैना की रस्म
(12) बढ़ार की रस्म
(13) कांकण डोरडा/ कांकण बंधन- बन्दोली के दिन वर और वधू के दाहिने हाथ और पांव में कांकण डोरा बांधा जाता है।
(14) मांडा झाकणा की रस्म
(15) कोथला (छुछक) की रस्म
(16) जान चढ़ना/ निकासी की रस्म
(17) सास द्वारा दही देना की रस्म
(18) मंडप (चवंरी) छाना की रस्म
(19) पाणिग्रहण/ हथलेवा जोड़ना की रस्म
जेवनवार की रस्म – पहला जेतनवार पाणिग्रहण से पूर्व होता है, जिसे “कंवारी जान का जीमण” कहते है। दूसरे दिन का भोज ” परणी जान का जीमण” कहलाता है। शाम का भोजन” “बडी जान का जमीण” कहलाता है। चैथा भोज मुकलानी कहलाता है।
गृहप्रवेश/ नांगल की रस्म – वर की बहन या बुआ (सवासणियां) कुछ दक्षिणा लेकर उन्हें घर में प्रवेश होने देती है। इसे “बारणा राकना ” कहते है। वधू के साथ उसके पीहर से उसका छोटा भाई या कोई निकट संबंधी आता है। वह ओलन्दा या ओलन्दी कहलाती है।
(20)राति जगा की रस्म
(21)रोड़ी पूजन की रस्म
(22) बत्तीसी नूतना/भात नूतना की रस्म
(23) मायरा/ भात भरना की रस्म