1. मंजीराः- यह पीतल तथा काँसा की मिश्रित धातु का बना होता हैं। इसकी आकृति गोलाकार हैं। यह हमेशा जोड़े में बजाया जाता हैं। कामड़ जाति की महिलाएँ तेरहताली नृत्य करने समय बजाती हैं।
2. झाँझः- यह मंजीरे की बड़ी अनुकृति हैं। यह बड़े ढ़ोल तथा तासा के वादन के साथ बजाया जाता हैं। शेखावाटी क्षेत्र में कच्छी घोड़ी नृत्य करते समय बजाया जाता हैं।
3. थालीः- यह काँसे की बनी होती हैं। चरी नृत्य के समय प्रयोग किया जाता हैं।
4. चिमटाः- यह लाहे की दो पतली पट्टिकाओं से मिलकर बना होता हैं। इन पट्टियों के बीच में लोहे की गोल-गोल छोटी पत्तियों लगा दी जाती हैं। इसे बायें हाथ में पकड़कर दाएँ हाथ की अँगुलियों से भजन कीर्तन के समय बजाया जाता हैं।
5. घण्टा (घड़ियाल)ः- यह पीतल तथा अन्य धातु का बना होता हैं इसकी आकृति गोलाकार होती हैं। इसे डोरी से लटकाकर हथोड़े या डंडे से चोट मारकर बजाया जाता हैं। इसका प्रयोग मंदिरों में होता हैं। इसका छोटा रूप घण्टी कहलाता हैं।
6. झालरः- काँसे या ताँबे की बनी मोटी चक्राकार प्लेट (तश्तरी) जैसी होती हैं। जिस पर लकड़ी की डंडी से चोट मार कर बजाया जाता हैं। यह मंदिरों में सुबह-शाम आरती के समय बजाई जाती हैं।
7. भरनीः- मिट्टी के मटके के संकरे मुँह पर कांसे की प्लेट ढककर दो डंडियों की सहायता से बजाया जाने वाला वाद्य। यह अलवर-भरतपुर जिलों के सर्प के काटे हुए का लोक देवताओं के यहाँ इलाज करते समय बजाया जाता हैं।
8. घड़ाः- मिट्टी का बना होता हैं। इसका मुँह छोटा होता हैं, वादक इसे दोनों हाथों में उटाकर मुँह से उसके अंदर फूँक मारते हुए उसे अपने अंददाज में हिलाता रहता हैं जिससे मधुर संगीत निकलता हैं। यह मुख्य रूप जैलमेर-बाड़मेर में भक्ति संगीत के दौरान बजाया जाता हैं।
9. घुँघरूः- यह पीतल या कांसे का बना छोटा गोल (घण्टाकार) वाद्य हैं, जिनके अंदर लोहे के छोटे गोल छर्रे या कंकड़ रहते हैं। नृत्य करते समय कलाकार पैरों में बांधता हैं।
10. करतालः- इसमें दो चैकोर लकड़ी के टुकड़ों के बीच में पीतल की छोटी-छोटी गोल तश्तरियाँ लगी रहती हैं जो कि लकड़ी के टुकड़ों को परस्पर टकराने के साथ मधुरता से झंकृत होती हैं। यह हाथ की अँगुलियों एवं अंगूठे में पहनकर बजाया जाता हैं। इसका मेल मंजीरे एवं इकतारे से हैं।
11. खड़तालः- लकड़ी के चार छोटे-छोटे चिकने एचं पतले टुकड़ों से बना होता हैं। यह दोनों हाथों में लेकर बजाया जाता हैं। इसका प्रसिद्ध कलाकार स्व. सद्दीक खाँ मांगणियार था।
12. रमझोलः- चमड़े की पट्टी पर बहुत सारे छोटे-छोटे घुँघरू सिले होते हैं, जिन्हें दोनों पैरों पर नृत्य करते समय घुटनों तक बाँधा जाता हैं। होली के अवसर पर गैर नृत्य करते समय लोग बाँधते हैं।
13. घुरालियोंः- यह पाँच-छः अंगुल लम्बी बाँस की खपच्ची से बना होता हैं। इसके एक ओर छीलकर मुख पर धागा बाँध दिया जाता हैं। इसे दाँतों के बीच दबाकर धागे को ढील एवं तनाव देकर बजाया जाता हैं। यह कालबेलिया एवं गरासिया जाति का प्रमुख वाद्य हैं।